कुँअर जल लोचन भरि-भरि लेत।
बालक बदन बिलोकि जसोदा, कत रिस करति अचेत।
छोरि उदर तैं दुसह दाँवरी, डारि कठिन कर बेंत।
कहि धौं री तोहि क्यों किर आवै, सिसु पर तामस एत।
मुख आँसू अरु माखन-कनुका, निरखि नैन छबि देत।
मानौ स्रवत सुधानिधि मोती, उडुगन अवलि समेत।
ना जानौं किहिं पुन्य प्रगट भए इहिं ब्रज नंद-निकेत।
तन-मन-धन न्यौछावरि कीजै सूर स्याम कै हेत।।349।।