कह्यौ सुक श्री भागवत विचार -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सांरग




कह्यौ सुक श्री भागवत विचार।
जाति-पाँति कोउ पूछत नाहीं, श्रीपति कैं दरबार।
श्रीभागवत सुनै जो हित करि, तरै सो भव-जल पार।
सूर सुमिरि सो रटि निसि-बासर, राम-नाम निज सार।।231।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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