कहौ कपि, कैसैं उतरे पार?
दुस्तर अति गंभीर बारि-निधि, सत जोजन विस्तार?
इत उत दैत्य क्रुद्ध मारन कौं, आयुध घरे अपार।
हाटकपुरी कठिन पथ, बानर, आए कौन अघार?
राम-प्रताप, सत्य सीता कौ, यहै नाव-कनधार।
तिहिं अधार छिन मैं अवलंध्यौ आवत भई न वार।
पृष्ठभाग चढ़ि जनक-नंदिनी, पौरुष देखि हमार।
सूरदास लै जाउँ तहाँ, जहँ रघुपति कंत तुम्हार॥89॥