कहौ कपि, कैसैं उतरे पार -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग सारंग


 
कहौ कपि, कैसैं उतरे पार?
दुस्तर अति गंभीर बारि-निधि, सत जोजन विस्तार?
इत उत दैत्य क्रुद्ध मारन कौं, आयुध घरे अपार।
हाटकपुरी कठिन पथ, बानर, आए कौन अघार?
राम-प्रताप, सत्य सीता कौ, यहै नाव-कनधार।
तिहिं अधार छिन मैं अवलंध्यौ आवत भई न वार।
पृष्ठभाग चढ़ि जनक-नंदिनी, पौरुष देखि हमार।
सूरदास लै जाउँ तहाँ, जहँ रघुपति कंत तुम्हार॥89॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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