कहियौ स्याम सौ समुझाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


कहियौ स्याम सौ समुझाइ।
यह नातौ नहिं मानत मोहन, मनौ तुम्हारी घाइ।।
एक बार माखन के काजै, राखे मैं अटकाइ।
वाकौ बिलग न मानौ मोहन, लागै मोहि बलाइ।।
बारहिं बार यहै लौ लागी, गहै पथिक के पाइँ।
'सूरदास' या जननी कौ जिय, राखौ बदन दिखाइ।। 3172।।

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