पंथी इतनी कहियौ बात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


पथी इतनी कहियौ बात ।
तुम बिनु इहाँ कुँवर वर मेरे, होत जिते उतपात ।।
बकी अघासुर टरत न टारे, बालक बनहिं न जात ।
ब्रज पिजरी रुधि मानौ राखे, निकसन कौ अकुलात ।।
गोपी गाइ सकल लघु दीरघ, पीत वरन कृस गात ।
परम अनाथ देखियत तुम बिनु, केहिं अवलंबै तात ।।
कान्ह कान्ह कै टेरत तब धौ, अब कैसै जिय मानत ।
यह व्यवहार आजु लौ है ब्रज, कपट नाट छल ठानत ।।
दसहूँ दिसि तै उदित होत है, दावानल के कोट ।
आँखिनि मूँदि रहत सनमुख ह्वै, नामकवच दै ओट ।।
ए सब पुष्ट हते हरि जेते, भए एकही पेट ।
सत्वर ‘सूर’ सहाइ करौ अब, समुझि पुरतान हेट ।। 3171 ।।

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