कहा तुम इतनैहि कौ गरवानी।
जोबन रूप दिवस दसही कौ, जल अँजुरी कौ जानी।।
तृन की अगिनि, धूम कौ मंदिर, ज्यौ तुषार-कन-पानी।
रिसही जरति पतंग ज्योति ज्यौ जानति लाभ न हानी।।
करि कछु ज्ञानऽभिमान जान दै, हैऽब कौन मति ठानी।
तन धन जानि जाम जुग छाया, भूलति कहा अयानी।।
नवसै नदी चलति मरजादा, सुधियै सिंधु समानी।
'सूर' इतर ऊसर के बरषै, थोरैहि जल इतरानी।।2592।।