एतौ हठ अब छाँड़ि मानि री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग पुरिया


एतौ हठ अब छाँड़ि मानि री, तू चलि पिय पै प्यारी री।
अति बिचित्र गुन-रूप-आगरी, परम चतुर तिय भारी री।।
मदन दहत मोहन तन, तेरी उनकी पीर न न्यारी री।
'सूरदास' प्रभु बिरह बिकल है, नैकु न निरखि निहारी री।।2593।।

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