कहा कहौं सुंदरघन तोसौं।
घेरा यहै चलावत घर-घर स्रवन सुनत जिय सोसौं।।
भगिनी मातु-पिता, बांधव अरु गुरुजन यह कहैं मोसौं।
राधा कान्ह एक सँग बिलसत, मनहीं मन अपसोसौं।।
कबहुँक कहौं सबनि परित्यागौं, बूझति हौं अब गौं सो।
सूर स्याम-दरसन बिनु पाऐं, नैन देत मोहिं दोषौ।।1682।।