कहा करौ गुरुजन डर मान्यौ।
आए स्याम कौन हित करिके, मैं अपराधिनि कछू न जान्यौ।।
ठाढ़े स्याम रहे मेरै आँगन, तब तै मन उन हाथ बिकान्यौ।
चूक परी मोकौ सबही बिधि, कहा करी गई भुलि मणन्यौ।।
वै उतहीं कौ गए हरषि मन, मेरी करनी समुझि अयान्यौ।
'सूर' स्याम सँग मन उठि लाग्यौ मो पर बारबार रिसान्यौ।।1884।।