करति हैं हरि-चरित ब्रज-नारि।
देखहीं अति बिकल राधा, यहै बुद्धि बिचारि।।
इक भई गोपाल कौ बपु, इक भई बनवारि।
इक भई गिरिधरन समरथ, इक भई दैत्यारि।।
एक इक भईं धेनु-बछरा, इक भई नँदलाल।
इक भई जमला-उधारन, इक त्रिभंग रसाल।।
इक भई छबि-रासि मोहन, कहति राधा नारि।
इक कहति उठि मिलहु भुज भरि, सूर-प्रभु की प्यारि।।1121।।