ऐसी कुँवरि कहाँ तुम पाई।
राधा हूँ ते नखसिख सुंदरि, अब लौ कहाँ दुराई।।
काकी नारि, कौन की बेटी, कौन गाउँ तै आई।
देखी सुनी न ब्रज, बृंदावन, सुधि बुधि हरति पराई।।
धन्य सुहाग भाग याकौ, यह जुवतिनि को मनभाई।
'सूरदास' प्रभु हरषि मिले हँसि, ले उर कंठ लगाई।।2169।।