नंदनंदन हँसे नागरी मुख चितै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंड मलार


नंदनंदन हँसे नागरी मुख चितै, हरषि चंद्रावली कंठ लाई।
वाम भुज रवनि, दच्छिन भुजा सखी पर, चले बनधाम सुख कहि न जाई।।
मनौ बिंबि दामिनी बीच नव घन सुभग, देखि छबि काम रति सहित लाजै।
किधौ कंचनलता बीच सु तमाल तरु, भामिनिनि बीच गिरिधर बिराजै।।
गए गृह कुंज, अलि गुंज, सुमननि पुंज, देखि आनंद भरे 'सूर' स्वामी।
राधिकारवन, जुवतीरवन मनरवन निरखि छवि मन काम कामी।।2170।।

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