एक समय सुत कौ हलरावति -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग बिलावल
तृणावर्त वध




एक समय सुत कौ हलरावति जसुमति मुदित करति मृदु गानै।
बिधु सौ बदन कमल-दल-लोचन सुंदर स्याम तबै जँभुआने।।
तब बिलोकि ब्याकुल भई जननी तीनहुँ लोक बदन दरसाने।
'सूरदास' प्रभु मंदमंद हँसि तबहिं महरि माया अरुझाने।। 10 ।।

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