देखौ सखि अकथ रूप अतूथ -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग बिभास
संकटासुरवध




देखौ सखि अकथ रूप अतूथ।
एक अंबुज मध्य देखियत बीस दधि-सुत-जूथ।।
एक सुक तहँ दोइ जलचर उभय अर्क अनुप।
पंच बिरचे एकही ढिग कहौ कीन सरूप।।
भई सिसुता माँहिं सोभा करौ अर्थ बिचारि।
‘सूर’ श्री गोपाल की छवि राखिए उर धारि।। 9 ।।

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