ऊधौ जोग सिखावन आए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


 
ऊधौ जोग सिखावन आए, अब कैसै धीरज धरौं।
जोरि जोरि चित जोरिं जुरान्यौ, जोरयौ जोरि न जान्यौ।।
तब धौ जोग कहाँ हो ऊधौ, जब यह जोग दृढ़ान्यौ।
उन हरि हमसौ प्रीति जु कान्हा, जैसै मानऽरु पानी।।
तलफि तलफि जिय निकसन लाग्यौ, पाना पीर न जानी।
निसि बासर मोहिं पलक न लागे, कोटि जतन करि हारी।
ज्यौ भुवंग तजि गयौ केचुली, सो गति भई हमारी।
एक समय हरि अपने हाथनि, करनफूल पहिराए।।
अब कैसै माटी के मुद्रा, मधुकर हाथ पठाए।
बेनी सुभग गुही अपने कर, चरननि जावक दीन्हौ।।
कहा कहौ वा स्याम सुंदर सौ, निपट कठिन मन कीन्हौ।
चोवा चंदन और अरगजा, जा सुख मैं हम राखी।।
अब तन कौ हम भस्म चढ़ावै, तुम मधुकर हौ साखी।
तुम जो बसत हौ मथुरा नगरी, हम जु बसतिं इहि गाउँ।।
ऊधौ हरि सौ जाइ कहौजै, प्रान तजै कै ठाउँ।
प्रीतम प्यारे प्रान हमारे, रहे अधर पर आइ।।
'सूरदास' हरि जू के आगै, कौन कहै दुख जाइ।।3601।।

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