आजु हो बधायौ बाजै नंद गोप-राइ के -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


(माई) आजु हो बधायौ बाजै नंद गोप-राइ के।
जदुकुल-जादौराइ जनमे हैं आई के।
आनंदति गोपी-ग्वाल, नाचैं कर दै-दै ताल, अति अहलाद भयौ जमुमति माइ कै।
सिर पर दूब धरि, बैठ नंद सभा-मधि द्विजनि कौं गाइ दीन्ही बहुत मँगाइ कै।
कनक कौ माट लाइ, हरद-दही मिलाइ, छिरकैं परसपर छल-बल धाइ कै।
आठैं कृष्न पच्छ भादौं महर कैं दधि कादौं, मोतिनि वँधायौ बार महल मैं जाइ कै।
ढाढ़ी औ ढाढ़िनि गावैं, ठाढ़े हुरके बजावैं, हरषि असीस देत मस्तक नवाइ कै।
जोइ-जोइ माँग्यौ जिनि सोइ-सोइ पायौ तिनि, दीजै सूरदास दर्स भक्तनि वुलाइ कै॥31॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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