आजु बधाई नंद कै माई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


आजु बधाई नंद कैं माई। व्रज की नारि सकल जुरि आइं।
सुंदर नंद महर कैं मंदिर। प्रगटयौ पूत सकल सुख-कंदर।
जसुमति-ढोटा व्रज की सोभा। देखि सखी, कछु औरै गोभा।
लछिमी-सी जहँ मालिनि बोलै। बंदन-माला वाँधत डोलै।
द्वार बुहारति फिरतिं अष्टसिधि। कौरनि सथिया चीततिं नवनिधि।
गृह-गृह तैं गोपी गवनीं जब। रंग-गलिनि विच भीर भई तब।
सुबरन-थार रहे हाथनि लसि। कमलनि चढ़ि आए मानौ ससि।
उमँगी प्रेम-नदी-छवि पावैं। नंद-सदन-सागर कौं धावै।
कंचन कलस जगमगैं नग के। भागे सकल अमंगल जग के।
डोलत ग्वाल मनौ रन जीते। भए सबनि के मन के चीते।
अति आनंद नंद रस भीने। परबत सात रतन के दीने।
कामधेनु तैं नैंकु न हीनी। द्वै लख धेनु द्विजनि कौं दीनी।
नंद पौरि जे जाँचन आए। बहुरौ फिरि जाचक न कहाए!
घर के ठाकुर कैं सुत जायौ। सूरदास तब सब सुख पायौ॥32॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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