आजु कन्हैया बहुत बच्यौ री।
खेलत रह्यौ घोष कैं बाहर, कोउ आयौ सिसु-रूप रच्यौ री।।
मिलि गयौ आइ सखा की नाई लै चढ़ाइ हरि कंध सच्यौ री।
गगन उड़ाइ गयौ लै स्यामहिं, आनि धरनि पर आप दच्यौ री।।
धर्म सहाइ होत है जहँ तहँ, स्रम करि पूरब पुनय पच्यौ री।
सूर स्याम अब कैं बचि आए, ब्रज घर-घर सुख-सिंधु मच्यौ री।।606।।