अहो पति सो उपाइ कछु कीजै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


अहो पति सो उपाइ कछु कीजै।
जिहिं उपाइ अपनौ यह बालक, राखि कंस सौं लीजै।
मनसा, बाचा, कहत कर्मना, नृप कबहूँ न पतीजै।
बुधि, बल, छल, कल कैसेंहु करिकै, काढ़ि अनतहीं दीजै।
नाहिं न इतनौ भाग जो यह रस, नित लोचन-पुट पीजै।
सूरदास ऐेसे सुत कौ जस, स्रवननि सुनि-सुनि जीजै॥9॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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