अहो पति सो उपाइ कछु कीजै।
जिहिं उपाइ अपनौ यह बालक, राखि कंस सौं लीजै।
मनसा, बाचा, कहत कर्मना, नृप कबहूँ न पतीजै।
बुधि, बल, छल, कल कैसेंहु करिकै, काढ़ि अनतहीं दीजै।
नाहिं न इतनौ भाग जो यह रस, नित लोचन-पुट पीजै।
सूरदास ऐेसे सुत कौ जस, स्रवननि सुनि-सुनि जीजै॥9॥