अब हरि आइहैं जनि सोचै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग केदारी


अब हरि आइहैं जनि सोचै।
सुनु विधुमुखी वारि नैननि तै, अब तू काहैं मोचै।।
लै लेखनि मसि लिखि अपने, संदेसहिं छाँड़ि सँकोचै।
‘सूर’ सु विरह जनाउ करत कत, प्रबल मदन रिपु पोचै।। 4280।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः