अब वै घातै उलटि गई।
जिन बातनि लागत सुख आली, तेऊ दुसह भई।।
रजनी स्याम स्याम सुदर संग, अरु पावस की गरजनि।
सुख समूह की अबधि माधुरी, पिय रसबस की तरजनि।।
मोर पुकार गुहार कोकिला, अलि गुजार सुहाई।
अब लागति पुकार दादुर सम, बिनही कुँवर कन्हाई।।
चंदन चंद समीर अगिन सम, तनहिं देत दब लाई।
कालिंदी अरु कमल कुसुम सब, दरसन ही दुखदाई।।
सरस बसत सिसिर अरु ग्रीषम, हितरितु की अधिकाई।
पावस जरै ‘सूर’ के प्रभु बनु, तरफत रैनि बिहाई।। 3198।।