अब मोहिं जानियै सो कीजै।
सुनि राधिका कहत माधौ यौ, जो बूझियै दंड सो लीजै।।
उर उर चापि, बाँधि भुज बंधन, नख नाराच मरम तकि दीजै।
भौंह चढ़ाइ, अधर दसननि दंसि, अधर सुधा अपनै मुख पीजै।।
अब जनि करै बिलंब भामिनी, सोइ करै जिहिं गात पसीजै।।
ग्रंथि गुननि गहि गूढ़ गाँठि दै, छुटै न कबहूँ स्रम जल भीजै।
सुनि सखि सुमुखि पाँइ लागति हौ, नाही मान महारस छीजै।।
'सूर' सु जीवन सफल दसौ दिसि, बैरी बस करि जौ जग जीजै।।2823।।