हरि मोसौ गौन की कथा कही।
मन गह्वर मोहिं उतर न आयौ, हौ सुनि सोचि रही।।
सुनि सखि सत्य भाव की बातै, बिरह बेलि उलही।
करवत चिह्न कहे हरि हम सौ, ते अब होत सही।।
आजु सखी सपने मैं देख्यौ, सागर पालि ढही।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरौ गवन सुनि, जल ज्यौ जात बही।।2965।।