स्याम बिना यह कौन करै।
चितवत ही मोहिनी लगावै, नैंकु हँसनि पर मनहिं हरै।।
रोकि रह्यौ प्रातहिं गहि मारग, लेखौ करि दधि-दान लियौ।
तनु की सुधि तबही तैं भूली, का पढ़ि कै सिर नाइ दियौ।।
मन के करत मनोरथ पूरन, चतुर नारि इहिं भाँति कहैं।
सूर स्याम मन हरयौ हमारौ, तिहिं बनु कहि कैसैं निबहैं।।1628।।