समुझि न परति तिहारी ऊधौ।
ज्यौ त्रिदोष उपजै जक लागत, बोलत बचन न सूधौ।।
आपुन कौ उपचार करौ अति तब औरनि सिख देहु।
बड़ौ रोग उपज्यौ है तुमकौं भवन सवारै लेहु।।
ह्याँ भेषज नाना भौतिन के, अरु मधुरिपु से बैद।
हम कातर डरपति अपनै सिर, यह कलंक है खेद।।
साँची बात छाँड़ि अलि तेरी, झूठी को अब सुनिहै।
'सूरदास' मुक्ताहल भोगी, हंस ज्वारि क्यौ चुनिहै।।3529।।