हम अलि गोकुलनाथ अराध्यो -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


  
हम अलि गोकुलनाथ अराध्यो।
मन, क्रम, बच हरि सौ धरि पतिब्रत, प्रेमजोग तप साध्यौ।।
मातु पिता हित, प्रीति, निगम पथ तजि, दुख सुख भ्रम नाख्यौ।
मानऽपमान परम परितोषी, सुस्थल थिति मन राख्यौ।।
सकुचासन कुल सील करषि करि, जगतबंद्य करि बंदन।
मौनऽपवाद पवन आरोगन, हित क्रम काम निकदन।।
गुरुजन कानि अगिनि चहुँ दिसि, नभ तरनि ताप बिनु देखे।
पिवत धूम उपहास जहाँ तहँ, अपजस स्रवन अलेखे।।
सहज समाधि सारि बपु बानक निरखि, निमेष न लागत।
परम ज्योति प्रति अंग माधुरी, धरति यहै निसि जागत।।
त्रिकुटि संग भ्रूभंग, तराटक, नैन नैन लगि लागै।
हँसनि प्रकास सुमुख कुंडल मिलि, चंद सूर अनुरागै।।
मुरली अधर स्रवन धुनि सो सुनि, सबद अनाहद कानैं।
बरषत रस रुचि बचन संग सुख, पद आनंद समानै।।
मंत्र दियौ मन जात भजन लगि, ज्ञान ध्यान हरि ही कौ।
‘सूर’ कहौ गुरु कौन करै अलि, कौन सुनै मन फीकौ।।3530।।

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