सब सुख लै करि स्याम सिधारे।
सुफलकसुत कछु भली न कीन्ही, बैठै ही अपडारे।।
चलत पीत पट गहि नहि राखे, यह जिय सोच हमारे।
भूख नीद छुटि गई सुवासर, सुनहु न ऊधौ प्यारे।।
महा प्रलय तै कत ब्रज राख्यौ, कर धरि सैल उबारे।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस बिनु, क्यौ जु रहै ये तारे।।4010।।