ऊधौ हम ब्रजनाथ बिसारे।
जब तै गवन कियौ मधुवन कौ, चितवत लोचन हारे।।
महा प्रलय तै काहै राखी, इंद्र त्रास प्रभु टारे।
छूटत नहीं त्रास हिरदै तै तब न मुई अब मारे।।
अवधि बदी हरि ते सब बीती, आवन कहि जु सिधारे।
'सूरदास' प्रभु कब धौ मिलैंगे, लै गए प्रान हमारे।।4011।।