रह्यौ मन सुमिरन कौ पछितायौ।
यह तन राँचि-राँचि करि विरच्यौ, कियौ आपनौ भायौ।
मन-कृत-दोष अथाह तरंगिनि तरि नहिं सक्यौ, समायी।
मेल्यौ जाल काल जब खैच्यौ, भयो मीन जल हायौ।
कीर पढ़ावत गनिका तारी, ब्याध परम पद पायौ।
ऐसौ सूर नाहिं कोउ दूजौ, दूरि करै जम-दायौ।।67।।