महरि, गारुड़ी कुँवर कन्हाई।
एक बिटिनियाँ कारैं खाई, ताकौं स्याम तुरतहीं ज्याई।।
बोलि लेहु अपने ढोटा कौं, तुम कहि कै देउ नैंकु पठाई।
कुँवरि राधिका प्रात खरिक गई तहाँ कहूँ धौं कारैं खाई।।
यह सुनि महरि मनहिं मुसुक्यानी, अबहिं रही मेरैं गृह आई।
सूर स्याम राधहिं कछु कारन, जसुमति समुझि रही अरगाई।।754।।