तब हरि कौं टेरति नंदरानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


तब हरि कौं टेरति नँदरानी।
भली भई सुत भयौ गारुड़ी, आजु सुनी यह बानी।।
जननी-टेर सुनत हरि आए, कहा कहति री भैया?
कीरति महरि बुलावन आई, जाहु न कुँवर कन्हैया।।
कहूँ राधिका कारैं खाई, जाहु न आवौ झारि।
जंत्र-मंत्र कछु जानत हौ तुम, सुर स्याम बनवारि।।755।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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