भली करी उठि प्रातहिं आए।
मैं जानत सब ग्वालि उठिं जब, तब तुम मोहिं बुलाए।।
अब आवति ह्वैहैं दधि लीन्हे, घर-घर तैं ब्रज-नारी।
हंसे सबै कर तारी दै-दै, आनंद कौतुक भारी।।
प्रकृति प्रकृति अपनैं ढिग राखे, संगी पाँच हजार।
और पठाइ दिये सूरज-प्रभु जे-जे अतिहिं कुमार।।1494।।