पारथ के सारथि हरि आप भए हैं।
भक्त-बछल नाम निगम गाइ गए हैं।
बाएँ कर बाजि-बाग दाहिन हैं बैठे।
हाँकत हरि हाँक देत गरजत ज्यौ ऐंठे।
छाता लौं छाँह किए सोभित हरि छाती।
लागन नहिं देत कहूँ समर-आँच ताती।
करन-मेघ वान-बुँद भादौं- झरि लायौ।
जित जित मन अर्जुन कौ तितहिं रथ चलायौ।
कौरौ-दल नासि नासि कीन्हौं जन-भायौ।
सरन गए राखि लेत सूर सुजस गायौ।।23।।