नंद निकट तब गए कन्हाई। सुनत बात तहँ इंद्र-पुजाई।।
महर नंद उपनंद तहाँ सब। बोलि लिए वृषभानु महर तब।।
दीपमालिका रचि रचि-साजत। पुहुप-माल-मंडली बिराजत।।
बरष सात के कुंवर कन्हाई। खेलत मन आनंद बढ़ाई।।
घर-घर देतिं जुवति-जन हाथा। पूजा देखि हँसत ब्रजनाथा।।
मो आगैं सुरपति की पूजा। मोतैं और देव को दूजा।।
सत-सत इंद्र रोम प्रति लोमनि। सत लोमनि मेरैं इक रोमनि।।
सूर स्याम ये मन सौं बातैं। लीन्हौ भोग बहुत दिन जातै।।895।।