सुरगति-पूजा जानि कन्हाई। बार-बार बूझत नँदराई।।
कौन देव को करत पुजाई। सो मोसौं तुम कहौ बुभाई।।
महर कह्यौ तब कान्हा सुनाई। सुरपति सब देवनि के राई।।
तुम्हरे हित मैं करत पुजाई। जातैं तुम रहौ कुसल कन्हाई।।
सूर नंद कहि भेद बताई। भीर बहुत घर जाहु सिखाई।।896।।