तिरिया रैनि घटे सचु पावै।
अंचल लिखति स्वान की मूरति, उडुगन पथहि दिखावै।।
हँसत कुमोदिनि बिहँसत पदमिनि, भँवर निकट गुन गावै।
तजत भोग चकई चकवा जल, सारँग बदन छपावै।।
अपने सुख संपति के काजै, कस्यप सुतहि मनावै।
'सूरदास' कंकन द्यौ तबही, तमचुर बचन सुनावै।। ३२७३।।