मोकौ माई जमुना जम ह्वै रही।
कैसै मिलौ स्यामसुंदर कौं, बैरिनि बीच बही।।
कितिक बीच मथुरा अरु गोकुल, आवत हरि जु नही।
हम अबला कछु मरम न जान्यौ, चलत न फेंट गही।।
अब पछिताति प्रान दुख पावत, जाति न बात कही।
'सूरदास' प्रभु सुमिरि सुमिरि गुन, दिन दिन सूल सही।। 3274।।