गावत मंगलचार महर-घर।
जसुमति भोजन करति चँड़ाई, नेवज करि-करि धरति स्याम डर।।
देखे रहौ न छुवै कन्हैया, कह जानै वह देव-काज पर।
और नहीं कुलदेव हमारैं, के गोधन, कै ये सुरपति बर।।
करति विनय कर जोरि जसोदा, कान्हहिं कृपा करौ करुनाकर।
और देव तुम सम कोउ नाहीं सूर करौं सेवा चरननि-तर।।817।।