हँसत गोप कहि नंद महर सौं, भली यह बात सुनाई।
हमहिं सबनि तुम बोलि पठाए, अपनैं जिय सब गए डराई।।
काहे कौं डरपे हम बोलत, हँसत कहत बातैं नँदराई।।
बड़ौ सँदेह कियौ तुम तुमकौं, ब्रजवासी हम तुन सब भाई।।
करौ बिचार इंद्र-पूजा कौ, जो चाहौ सो लेहु मँगाई।
बरष दिवस कौ दिवस हमारौ, घर-घर नेवज करौ चँड़ाई।।
अन्नकूट-विधि करत लोग सब, नेम सहित करि-करि पकवान।
महरि-बिनै कर जोरि इंद्र सौं, सूर अमर कर दीजै कान्ह ।।816।।