करति अवसेर वृषभान नारी।
प्रात तै गई, बासर गयौ बीति सब, जाम निसि गई, धौ कहाँ बारी।।
हार कै त्रास मै कुँवरि त्रासी बहुत, तिहि डरनि अजहुँ नहि सदन आई।
कहाँ मै जाउँ, कह धौ रही रुसि कै, सखिनि सौ कहति कहुं मिली माई।।
हार बहि जाइ, अति गई अकुलाई कै, सुता कै नाउँ इक बहै मेरै।
'सूर' यह बात जौ सुनै अबही महर, कहैगे मोहि ये ढंग तेरे।।2014।।