इन बातनि कछु पावति री।
बिनु देखै लोगनि सौ सुनि सुनि, काहै बैर बढ़ावति री।।
मोकौ जहाँ अकेली देखति, तबहि बात उपजाबति री।
ब्रजजुबतिनि की संगति त्यागी पुनि पुनि बोध करावति री।।
कैसी बुध्दि तुम्हारी सबकी, ऐसी तुमकौं भावति री।
'सूर' सीस तृन दै बुझति हौ, कहति तुमहु कहनावति री।।2013।।