स्याम संग सुख लूटति हौ।
सुनि राधे रीझे हरि तोकौ, अब उनतै तुम छूटति हौ।।
भली भई हरिकै रस पागी, वै तुमसौ रति मानत है।
आवत जात रहत घर तेरै अतर हित पहिचानत है।।
तुम अति चतुर, चतुर वै तुम तै, रूप गुननि दोउ नीके हौ।
'सूरदास' स्वामी स्वामिनि दोउ, परम भावते जी के हौ।।2212।।