जै जै धुनि तिहुँ लोक भई।
मारयौ कस धरनि उद्धारयौ, ओक आनंदमई।।
रजक मारि कोदड विभंज्यो, खेल करत गज प्रान लियौ।
मल्ल पछारि असुर संहारे, तुरत सबनि सुरलोक दियौ।।
पुर नर नारिनि कौ सुख दीन्हौ, जो जैसी फल सोइ लह्यौ।
'सूर' धन्य जदुवस उजागर, धन्य धन्य धुनि घुमरि रह्यौ।।3080।।