देखि नृप तमकि हरि चमक तहँई गए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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माग मारू


देखि नृप तमकि हरि चमक तहँई गए, दमकि लीन्हौ गिरह बाज जैसै।
धमकि मारयौ घाव, गुमकि हिरदै रह्यौ, झमकि गहि केस लै चले ऐसै।।
ठेलि हलधर दियौ झेलि तब हरि लियौ, महल के तरै धरनी गिरायौ।
अमर जय धुनि भई, धाक त्रिभुवन गई, कस मारयौ निदरि देवरायौ।।
धन्य बानी गगन, धरनि पाताल धनि, धन्य हो धन्य वसुदेव ताता।
धन्य अवतार सुर धरनि उपकार कौ, 'सूर' प्रभु धन्य बलराम भ्राता।।3079।।

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