हरि जू, सुनहु वचन सुजान।
विरह व्याकुल छीन तन मन, हीन लोचन कान।।
यहै है संदेस व्रज कौ, नाथ सुनहु निदान।
मैं सबै व्रज दीन देख्यौ, तन बिना ज्यौ प्रान।।
तुम बिना सोभा नहीं प्रभु, ज्यौ दिवस बिनु भान।
आस साँस उसास घट मै, अवधि आसा मान।।
जगतजीवन, जगतपालक, जगतनाथ, कृपाल।
करि जतन कछु ‘सूर’ के प्रभु, ज्यौ जियै व्रजवाल।।4101।।