हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 95 श्लोक 29-39

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचनवतितम अध्याय: श्लोक 29-39 का हिन्दी अनुवाद

प्रिये! तुम्‍हारे पिता के इस नगर में तो चन्द्रमा के बिना भी चन्‍द्र किरणों के समान गौर प्रकाश छाया रहता है। अत: मुझे यहाँ चन्‍द्रमा के होने और न होने के गुण-अवगुण का पता नहीं लगता; इसलिये मैं बारम्‍बार इस बात की चर्चा करूँगा। जो लोग दूसरों के लिये पुण्‍य और तपस्‍या से भी दुर्लभ है, उस ब्राह्मण राज्‍य को जिन्‍होंने अनायास ही प्राप्‍त कर लिया, जो स्‍तवन करने के योग्‍य हैं, यज्ञ में एकत्र हुए ब्राह्मण पवमान नाम वाले जिन उदार सोमदेव के गुण गात हैं, वे उन बुध के पिता हैं, जिनके पुत्र लोकोत्‍तर बल और पराक्रम से सम्‍पन्‍न राजा पुरूरवा हैं। वे प्राणाग्नि स्‍वरूप और स्‍तुति करने के योग्‍य हैं, (औषधियों और वनस्‍पतियों के स्‍वामी होने के कारण) उन्‍होंने नष्‍ट हुई अग्नि को अश्‍वत्‍थ के उत्‍पादन द्वारा शमी के गर्भ से प्रकट किया। वे रुद्रस्‍वरूप हैं। सुन्‍दर अंगों वाली प्रिये! तत्‍पश्‍चात इन महात्‍मा चन्‍द्रदेव ने पूर्वकाल में अप्‍सराओं में श्रेष्‍ठ उर्वशी (पुरूरवा रूप से) कामना की थी। उनका सारा शरीर ही अमृतमय है। पहले कभी घोर स्‍वभाव वाले श्रेष्‍ठ मुनियों ने उन अमृतमय चन्‍द्रमा को पी लिया था। उन्‍हीं के वंशज बुद्धिमान राजा पुरूरवा हुए, जो कुशग्रों द्वारा आरम्‍भ करके अनेकानेक यज्ञों का सम्‍पादन कर स्‍वर्ग में अग्नि तुल्‍य तेजस्‍वी रूप से प्रतिष्ठित हो पूजित होते हैं। पुरूरवा के वंश में आयु हुए, जिनके पुत्र नहुष थे। उन वीर नहुष ने देवराज पद प्राप्‍त कर लिया था।

देवताओं के लिये भी उत्‍कृष्‍ट देवता, जगत्‍स्रष्‍टा भगवान श्रीहरि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये चन्‍द्रमा के ही वंश में प्रमुख भीमवंशी वीर के रूप में प्रकट हुए हैं। सुभ्रु! उन चन्‍द्रमा को नक्षत्रस्‍वरूपा दक्ष की कन्‍याओं ने पतिरूप से वरण किया है। चन्‍द्रमा के ही वंश में शशिकुल-दीपक वीर एवं महात्‍मा राजा उपरिचर वसु हुए हैं, जो अपने कर्मों से चक्रवर्ती पद को प्राप्‍त हुए। उनका प्रभाव इन्द्र के समान था चन्‍द्रवंश के प्रधान पुरुष राजा यदु हो गये है, जो इस पृथ्‍वी पर राजाधिराज पद को प्राप्‍त हुए थे। उन्‍हीं महाराज के कुल में देवराज इन्‍द्र के तुल्‍य पराक्रमी भोजवंशी वीर प्रकट हुए हैं। कमललोचने! यदुकुल में कोई राजा ऐसा नहीं हुआ है, जो छल-कपट से काम लेने वाला हो। उस कुल में न तो कोई नास्तिक हुआ है न शठ, न श्रद्धाहीन हुआ है न कदर्य अथवा शौर्यहीन ही। कमल के समान विशाल नेत्र और शिखरमणि के तुल्‍य सुन्‍दर दांतों वाली सुन्‍दरि! तुम उसी चन्‍द्रवंश एवं यदुवंश की वधू हो। तुम सद्गुणों का अत्‍यन्‍त पात्र एवं स्‍पृहणीय हो। तुम सत्‍पुरुषों के प्रिय जगदीश्‍वर श्रीहरि को प्रणाम करो। देवि! जो स्‍वयम्‍भू ब्रह्मा जी के आश्रय स्‍थान है, सम्‍पूर्ण जगत तथा देवताओं के भी आधार हैं, वे गरुड़ध्‍वज पुरुषोत्‍तम भगवान नारायण तुम्‍हारे श्‍वसुर हैं। तुम उन्‍हें प्रणाम करो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में प्रद्युम्न का भाषणविषयक पंचानबेवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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