हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 40 श्लोक 27-40

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चत्वाथरिंश अध्याय: श्लोक 27-40 का हिन्दी अनुवाद

वह पर्वत अपने अत्यन्त विशाल मूलभाग और उच्चतम शिखर से पृथ्वी और आकाश में प्रविष्ट होकर उनकी थाह लगाता हुआ-सा खड़ा था। पर्वतों में श्रेष्ठ सुन्दर एवं मनोहर गोमन्त पर्वत पर पहुँचकर उन सभी देवोपम पुरुषों ने वहाँ निवास करने की इच्छा की। गरुड़ के समान पराक्रमी वे तीनों महापुरुष उस श्रेष्ठ पर्वत पर उसी तरह वेग से चढ़ने लगे जैसे पक्षी ऊपर आकाश में उड़ते हों। उस समय उनमें से किसी की भी गति अवरुद्ध नहीं होती थी। वे देवताओं की भाँति उसके सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ हो गये। वहाँ उन्‍होंने सहसा अपने रहने के लिये घर बना लिया, मानो मानसिक संकल्प से ही उसका निर्माण कर ‍लिया हो।

उन दोनों यदुकुमारों को वहाँ विराजमान हुआ देख परम बुद्धिमान परशुराम जी ने प्रसन्नतापूर्वक अपने अभीष्ट स्थान पर जाने के लिये उनसे पूछना आरम्भ किया- ‘तात! प्रभावशाली श्रीकृष्ण! अब मैं शूर्पारक नगर को जाऊंगा। आप दोनों को तो युद्ध में देवता भी नहीं हरा सकते (फि‍र मनुष्य‍ की तो बात ही क्या है?) श्रीकृष्ण! तुम दोनों के साथ मार्ग का अनुसरण करने से मुझे जो प्रसन्नता प्राप्त हुई है, वह मेरे इस अविनाशी शरीर को अनुगृहीत कर रही है। मैंने जिसे बताया था और जहाँ तुम्हें अपने दिव्य आयुध प्राप्त होने वाले हैं, वह स्थान यही है। देवताओं ने तुम्हारे लिये उनकी प्राप्ति का यही समय निर्धारित किया है, जो परलोक के ‍लिये हितकर है। देवताओं में श्रेष्ठ वैकुण्ठ! तुम सर्वव्यापी विष्णु हो। देवताओं ने सदा तुम्हारी स्तुति की है। श्रीकृष्ण! तुम मेरी यह तात्त्विक बात सुनो, जो सम्पूर्ण जगत के लिये हितकर है।

गोविन्द! तुमने मनुष्यों के हित के लिये संसार में मानव शरीर धारण करके जो यह लौकिक कर्म प्रारम्भ किया है, उसका यह पहला प्रयोग यहीं होने जा रहा है। काल ने उसका आयोजन यहीं किया है। श्रीकृष्ण! जरासंध के साथ संग्राम उपस्थित होने पर तुम स्वयं ही अपने-आप के द्वारा अपने को आयुध बल से सम्पन्न कर लेना और अपना रण-कर्कश रूप बना लेना। जिस समय तुम आठ मासल कन्धों से युक्त हो हाथों में चक्र और गदा उठाये युद्ध के लिये उपस्थित होओगे, उस समय तुम्हें देखकर देवराज इन्द्र भी भयभीत हो उठेंगे। मानद! जब तुम हाथ में हथियार लेकर युद्ध के लिये उद्यत हो गये हो, तब आज से ही भूमण्डल के राजाओं की स्वर्गीय यात्रा आरम्भ हो जायेगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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