हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चत्वाथरिंश अध्याय: श्लोक 41-48 का हिन्दी अनुवाद
शत्रुमर्दन श्रीकृष्ण! आप मानवरूप धारण करके इस धरातल पर आ गये हैं और युद्ध का अवसर भी उपस्थित है, इसलिये क्षत्रिय समाज मृत्यु से संकुचित न होकर रणभूमि में आने के लिये उतावला हो उठा है। किसी समय विशेष की प्रतीक्षा नहीं कर रहा है, क्योंकि उसका जन्म नक्षत्र क्रूर ग्रह से आक्रान्त हो गया है। श्रीकृष्ण! तुम दानवों का वध करने, नरेशों को स्वर्गलोक में भेजने तथा देवताओं को सुख पहुँचाने के उद्देश्य से युद्ध के लिये जल्दी करो। ‘सच्चिदानंदघन श्रीकृष्ण! तुम स्वरूपत: सबके द्वारा सत्कृत हो। तुम सर्वात्मा ने जो मेरा सत्कार किया है, उससे मैं चराचर प्राणियों सहित संपूर्ण लोकों द्वारा सत्कृत हो गया और सदा के लिए सत्कारवान बन गया। महाबाहो! मैं तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिए स्वयं भी साधना करूंगा। सभी भूमिपालों को चाहिए कि वे दुर्गम संकट और युद्ध के अवसरों पर मेरा स्मरण करें।' ऐसा कहकर परशुराम जी अनायास ही महान कर्म करने वाले श्रीकृष्ण को विजयसूचक आशीर्वाद से बढ़ावा देकर स्वयं अभीष्ट को चले गए। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में श्रीकृष्ण का गोमत पर्वत पर आरोहणविषयक चालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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