हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 40 श्लोक 11-26

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चत्वाथरिंश अध्याय: श्लोक 11-26 का हिन्दी अनुवाद

वन, गुफा और शिखरों से सम्पन्न वह शैलराज श्वेत बादलों से विभूषित था। वहाँ कटहल, आम्रातक (आमड़ा), आमों के समूह, बैंत, स्यन्दन (तिनिश), चन्दन, तमाल, इलायची के वन तथा मिर्च की झाड़ियां शोभा पाती थीं। वहाँ सब ओर पिप्पली की बेलें फैली थीं। इंगुदी के वृक्ष विचित्र शोभा दे रहे थे तथा सर्जरस (राल) के वृक्ष सब ओर से उस पर्वत को सुशोभित किये हुए थे। ऊंचे-ऊंचे शाल वृक्षों के वन तथा अन्य बहुत से विचित्र वन उस पर्वत की शोभा बढ़ा रहे थे। राल, नीम और अर्जुन वृक्षों का वन शोभा दे रहा था। पाड़र-वृक्षों के समूह वहाँ सब ओर छा रहे थे। हिंताल, तमाल और पुन्नाग (जायफल) उस शैल शिखर की शोभा बढ़ाते थे। वहाँ जलों में जलज कमल, स्थिलों में स्थल कमल तथा अन्यान्य वृक्ष समूह सब ओर से उस पर्वत के आभूषण बने हुए थे।

जामुन, केवड़े, कद्रु, केले, चम्पाल, अशोक, बकुल, बिल्वज और चिन्दुक आदि वृक्षों से वह शैल सुशोभित था। बहुत से कुंज और नागकेसर के फूल सब ओर से उसकी शोभा बढ़ाते थे। झुण्ड-के-झुण्ड हाथी वहाँ सब ओर फैले हुए थे। मृगों के समुदाय से वह शोभायमान था। उसके प्रस्तर खण्डों के मध्य भाग में सिद्ध, चारण तथा राक्षस बैठे हुए थे। गन्धर्व, गुह्यक तथा पक्षी भी उस पर्वत का सेवन करते थे। उसकी शिलाऐं सदा ही विद्याधर गणों से सेवित होती थीं। सिंहों और व्याघ्रों के दहाड़ने की ध्वनि से वह पर्वत निरन्तर गूंजता रहता था। जल की धाराऐं और चन्द्रमा की किरणें उसका सेवन एवं शोभा-संर्वधन करती थीं। देवता और गन्धर्व उसकी प्रशंसा करते थे। वह पर्वत अप्सराओं से अलंकृत था। दिव्य वनस्पतियों के नाना प्रकार के फूल वहाँ सब ओर बिखरे पड़े थे। उस पर्वत को कभी भी इन्द्र के वज्रप्रहार की व्यथा का अनुभव नहीं हुआ था। वहाँ न तो दावानल का भय था और न प्रचण्ड आंधी का। निर्झरों से प्रकट हुई सरिताऐं उस पर्वत को सुशोभित करती थीं। वह अपनी शोभा बढ़ाते हुए-से मुखाकार काननों से उपलक्षित होता था।

भाग द्वारा मानो वह लक्ष्मी से आंख मिला रहा था। पशुओं से सेवित कमनीय वनस्थलियां उसकी शोभा बढ़ाती थीं। पार्श्वभाग मे स्थित चितकबरे प्रस्तरखण्डों से वह ऐसी शोभा पा रहा था, मानो बहुरंगों बादलों से विभूषित हो रहा हो। अपने वृक्ष समूहों से भूमि को ढक देने वाली पुष्प शोभित वन श्रेणियां उस पर्वत को सब ओर से घेरकर उसी प्रकार शोभा सम्पन्न किये हुए थीं, जैसे पुष्पवती (रजस्वला होने के पश्चात स्नान एवं पुष्पहार से अलंकृत) युवती स्त्रियां पति को घेरकर खड़ी हों। जगह-जगह सुन्दर गुफाओं और मनोहर कन्दराओं से अलंकृत हुआ गोमन्त गिरी विभिन्न स्थानों में सपत्नी पुरुष की भाँति शोभा पाता था। विभिन्न प्रकार की औषधियां उसके शिखर को उद्भाशित किये हुए थीं। वानप्रस्थ मुनि उसका सेवन करते थे तथा उसके सहज सुन्द्र वनोद्देश्य कृत्रिम उद्यानों की भाँति उसे विभूषित किये हुए थे।


Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः