हरष भए नँदलाल बैठि 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


बन-भोजन हरि करत संग मिलि सुबल सुदामा।
स्याम कुँवर परसेन महर-सुत अरु श्रीदामा।
स्याम सबनि मिलि खात हैं लै-लै कौर छुड़ाइ।
औरनि लेत बुलाइ ढिग डहकि आपु मुख नाइ।
ब्रह्मा देखि विचारि सृष्टि कोउ नई चलाई।
मोहिं पठयौ जिहिं सौंपि ताहि कहिहौं कहा जाई।
देखौं धौं यह कौन है, बाल-बच्छ हरि लेउँ।
ब्रह्मलोक लै जाउँ हरि, इहि बिधि करि दुख देउँ।
अंतरजामी नाथ तुरत विधि मन की जानी।
बालक द्वै दए पठै धेनु बन कहूँ हिरानी।
जहाँ तहाँ बन ढूँढि़ कै, फिरि आए हरि-पास।
सखा सबनि बैठारि कै, आपुन गए उदास।
हरि लै बालक-बच्छ, ब्रह्मलोकहिं पहुँचाए।
फिरि आए जो कान्ह- कहूँ कोऊ नहिं पाए।
प्रभु तबहीं जान्यौ यहै, बिधि लै गयौ चोराइ।
जो जिहि रँग जिहि रूप कौ, बालक बच्छ बनाए।
तातैं कीने और ब्रह्म हृद-नाल उपायो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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